शनिवार, 11 अप्रैल 2015


जय-हिंदू जय-हिंदुस्तान
मरते हैं तो मरें किसान!!
राजा घूम रहा पेरिस में,
प्यादे देते फिरें बयान!!
हिंदू-हिंदू यहीं रहेंगे,
बाकी जाओ पाकिस्तान!!
एक के तन पर फटे चीथड़े,
एक का लाखों का परिधान!!
बच्चे हैं मोहताज मगर,
मेवा मिश्री खाते भगवान!!
छप्पन भोग लगाये लेकिन,
फिर भी ना माने हनुमान!!
लाल लंगोटा-लाल निशान!
जय बजरंगी जय हनुमान!!

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

‘मिड डे’ मील!


‘मिड डे’ मील की बदौलत 

पाकशालाओं में तब्दील होती
सरकारी पाठशालायें!
‘कन्फ्यूजन’ में फसे मास्साब!
खाना पकायें, खायें या फिर पढ़ायें,
गिनती के बच्चे,
प्रार्थना ख़त्म होते ही,
बरतन माँजने, में लग जायें! 
और मास्साब मंत्रणा में कि
आज दलिया, खीर, हलवा खिचड़ी
या फिर क्या कुछ और पकायें!
कौन सी जुगत से
टिफ़िन में भर कर 
घर को ले जायें
रोज नई-नई ‘डिश’ बनाते-बनाते
पाककला में प्रवीण हो चुके
कई मास्साबों की तो लालसा है,
अब उन्हें मास्साब नहीं,
हलवाई ही बुलाया जाये!
ताकि जब भी कोई गाँव में मरे,
तो दावत में ‘मालपुए’ बनाने का ठेका
उन्ही को मिल जाये!

मंगलवार, 24 मार्च 2015


थोड़ा सा सामान बचा है,
दिल में एक अरमान बचा है!!
घर तो कब का खाक हो गया,
अब तो सिर्फ मकान बचा है!!
किसे बतायें मन की बातें,
मन में क्या अरमान बचा है!!
सब के सब तो खुदा हो गये,
कौन यहाँ इंसान बचा है!!

शनिवार, 14 मार्च 2015


मैं कोशिश लाख करता हूँ, मगर नाकाम रहता हूँ,
मेरा सैयाद कहता है, मैं कोशिश ही नहीं करता!!



कभी सोचा भी नहीं था, वो फिर मिलेगा और
थाम कर हाथ साथ-साथ चलेगा मीलों!!




शोहरत के लिए बाप ने बेटी परोस दी!
मैं अब तलक हैरान हूँ, अखबार देखकर!!


इस अंजुमन में इल्म का सम्मान नहीं है,
सम्मान मिले है यहाँ दस्तार देखकर!!

शनिवार, 7 मार्च 2015

इन्डियाज डॉटर  
(पाठ-)  
चल री उठ
जल्दी उठ
बरतन धो
झाड़ू कर
पौछा कर
जल्दी कर  
गाली खा
चाय बना
चाय ला
जल्दी ला 
सपने मत बुन
ताने सुन
सूट पहन,
साड़ी पहन
कुछ भी पहन
    जींस मत पहन    
मेकअप कर
     बैग उठा      
ऑफिस जा!
बस में चढ़
धक्के खा,
सीटी सुन
फ़ब्ती सुन
छिड़!

(पाठ-

ऑफिस चल कर 
यस सर यस सर कर
सर केटचपर 
नोमत कर 
हस मत 
फस मत 
हस कर फस मत
काम कर
शाम कर
शाम तक काम कर!
अब घर चल
तन कर मत चल
झुक कर चल
रुक मत
झटपट घर चल!
घर ,
गीता पढ़
सीता बन
गीता मत बन
खाना बना
सबको खिला
अब खा,
गाली भी खा!
बिस्तर लगा,
जल्दी लगा
काम कर,
अब बिस्तर पर
जल्दी !
नाटक मत कर
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हिल डुल मत
उफ़ तक मत कर
चल हट
करवट बदल
रो या सो
कुछ भी कर,
बक बक मत कर
बड़ बड़ कर
पिट!





बुधवार, 4 मार्च 2015


अपने गीतों पर सारी दुनियाँ को नाच नचाऊँगा,

जाने वो दिन कब आयेगा, मैं मंचों पर गाऊँगा!!
प्रतिभा दम ना तोड़ दे मेरी, रोटी की जद्दोहद में,
कब रोटी का व्यूह तोड़कर, सच से आँख मिलाऊँगा!!

रविवार, 1 मार्च 2015

जो जा रहा है, मुझको मुफ़लिसी में छोड़कर!
है मुझको यकीं जल्द ही आयेगा लौटकर!!
मुझको अकेला छोड़के कागज़ की नाव में,
गुम हो गया है नाख़ुदा  पतवार तोड़कर!!
मुझसे बड़ा नाफ़हम यहाँ कौन मिलेगा,
जो आब-ए-चश्म पी रहा है जाम छोड़कर!!
माँ को ये लगे है मेरा बेटा मजे में है,
बेटा बशर करे है आसमान ओढ़कर!!
नाआश्ना भी मुझको नवाजेंगे दुआ से,
जाउँगा मैं जिस ऱोज ज़माने को छोड़कर!!



(नाफ़हम मूर्ख, आब-ए-चश्म- आँसू, नाआश्ना- अजनबी)