जब तलक पेट में रोटी थी, मैं भी खूब उड़ा!
आजकल रोटियों के वास्ते ’पर’ बेच रहा हूँ!!
आज अचानक किसी बात पर, फिर आया वो याद!
नामुमकिन है भूलना, पहला-पहला प्यार!!
सफर में है सफ़ीना जब तलक तू हाथ थामे रख,
मुझे पतवार से ज्यादा भरोसा तुझ पे है साथिन!!
जिन्हें जिम्मा मिला है, ज़ख्म पर मरहम लगाने का,
वो खुद आवाम के जख्मों को ताजा कर रहे है!!
खिलौने तोड़ने की उम्र में, मज़लूम के बच्चे,
खिलौने बेचकर घर का गुजारा कर रहे हैं!
ख़ुदख़ुशी के और भी लाखों तरीक़े थे मगर,
तेरे आगे हाथ फ़ैलाना मुझे अच्छा लगा!!
साजिशें लाखों हुईं उसको बुझाने की मगर,
ओट में उसकी हथेली की दिया जलता रहा!!
ये जो आशाओं के दीपक राजधानी में जले हैं,
है मुझे उम्मीद ये मेरा भी घर रोशन करेंगे!!
चाँद-तारों, फूल-ख़ुशबू में उलझ कर रह गई है,
जो ग़ज़ल, मैं उस ग़ज़ल को, रोटियों तक लाऊंगा!!
हो गई है ग़ुम ग़ज़ल जो हुस्न के बाज़ार में,
उस ग़ज़ल को फिर से घर की बेटियों तक लाऊँगा!!