बुधवार, 5 नवंबर 2014

समाधान की खोज







नशा एक सामाजिक समस्या है!
एक ऐसी समस्या, समाज का कोई भी तबका जिससे अछूता नहीं रह गया है! हर वर्ग- हर धर्म का प्रथम से लेकर अंतिम तक हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी नशे की चपेट में है! और सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है कि नशा करने वालों में सबसे बड़ी तादाद उन लोगों की है, जो इसके दुष्प्रभावों से भलीभांति परिचित हैं!
सरकारों द्वारा समय-समय पर लोगों को नशाखोरी से दूर रखने और उन्हें जागरूक करने के लिए अभियान भी चलाये जाते हैं! और तो और सरकार का एक विभाग भी है, जो इसी क्षेत्र में कार्य करता है, लेकिन यह भी जग जाहिर है कि, उस विभाग की हालत परसाईजी की चूहेदानीसे अधिक कुछ नहीं है!
नशे को जन-जन तक पहुँचाने वाले माफिया की पकड़ और इच्छा शक्ति इतनी मजबूत है, कि अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के सामान लेने तो भी आपको शायद दस कदम चलकर जाना पड़े, लेकिन यकीन मानिये इन नशीले और मादक पदार्थों की जितनी चाहो उतनी मात्रा आपको अपनी गली के नुक्कड़ वाली दुकान पर ही आसानी से उपलब्ध हो जाएगी!
सिर्फ शराब ही नहीं, उसके अलावा नशे के अन्य विकल्प, जैसे गांजा, भांग, चरस, हीरोइन, स्मैक और भी अनेक पदार्थ हैं, जो आजकल सर्व सुलभ हैं! नशे की लत और ड्रग्स माफियाओं के दिन-ब-दिन फैलते हुए इस मकडजाल का सबसे सॉफ्ट टारगेट होते हैं, स्कूलों में अध्यनरत किशोर और किशोरियां! और इसलिए इन माफियाओं की कोशिश रहती है कि हर स्कूल-कॉलेज के बाहर स्थित छोटी से छोटी दुकानों पर इनको उपलब्ध कराया जाय, और पुलिस प्रशासन की छत्र-छाया में वह अपने मंसूबों को अमली जामा पहनने में कामयाब भी हो रहे हैं!
किशोरों में पनपती इस नशे की लत के पीछे कहीं न कहीं उनके परिजन भी जिम्मेदार है! क्यूंकि जिनके बच्चों को ये लत लग चुकी होती है, वो तो अपने बच्चों के साथ किसी अपराधी के जैसा बर्ताव करके उन्हें अपराधबोध से ग्रसित कर देते हैं! परिणामस्वरूप बच्चा अपने माता-पिता से दूर और नशे के और करीब आता जाता है! और जिनके बच्चे इससे अछूते हैं, वो सोचते हैं कि पडोसी के बच्चे कर रहे हैं, तो करने दो मेरे तो दूध के धुले हैं, और फिर अगर कभी करने भी लगे तो तब का तब देखा जायेगा! और उनकी यही अनदेखी उनके बच्चों को भी देर-सबेर नशे की राह की तरफ धकेल देती है!
यह तो रही दूसरी बात, लेकिन क्या कारण है कि इतना सब कुछ होने जानने के बावजूद भी समाज कोई बड़ा तबका इस बुराई के खिलाफ़ एकजुट होकर आवाज नहीं उठाता?
क्यूँ कभी सर्व समाज के लोगों के मन में यह विचार नहीं आता कि चलो सब लोग मिलकर इस बुराई के उन्मूलन के लिए कोई कदम उठायें ?
ठीक है मान लिया कि देश और समाज को समस्त समस्याओं से उबारने का ठेका सिर्फ औ सिर्फ बुद्धिजीवी वर्ग के पास है! लेकिन, सोचिये जो वर्ग बुद्धिजीवी ही इसी नशे की बदौलत बना है, वह कभी इस समस्या को लेकर क्यूँ गंभीर होगा!