शनिवार, 31 जनवरी 2015

नैतिकता के नये मायने



आज एक अरसे बाद अपने स्नेहिल साथी और बाबा रामदेव जी द्वारा युवाओं को भ्रम में बनाये रखने के लिये चलाये जा रहे संगठन ‘युवा भारत’ के गाज़ियाबाद जनपद के जिलाप्रभारी भाई शुभम जी से बात हुई!
ज्ञात हुआ मोदी जी से देश को अब तक भले ही बाबाजी का ठुल्लू भी ना मिला हो, लेकिन बाबा जी को जरूर जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिल गई है! खैर इसमें नया तो कुछ नहीं है ये सब तो होना ही था आज नहीं तो कल! लेकिन मुझे आश्चर्य इस बात का है, एक तथाकथित सन्यासी को इतनी सुरक्षा की आवश्यकता की जरूरत क्यों आन पड़ी, और वो भी उस स्थिति में जब केंद्र में तथाकथित रामराज्य अर्थात् उनके ही शिष्य का शासन लागू हो चुका है! वैसे शिकायत मुझे मोदीजी से भी है कि, जो काम मात्र एक जोड़ी सूट सलवार से हो सकता था, उसके लिए सुरक्षाकर्मियों की इतनी लम्बी चौड़ी जमात बाबाजी के पीछे लगाने की क्या जरूरत थी! अगर आप अपने लिये नौ लाख का सूट सिलवा सकते हैं तो, तो एक सलवार बाबाजी के लिए भी सिलवा देते, बेशक़ टेरालीन या फिर लट्ठे की ही सही!
ज्ञात हो कि भाई के साथ मेरे प्रगाढ़ सम्बन्ध उस समय से हैं, जब मैं अपने पतंजलि कार्यकाल के दौरान इनके जिले में सेवारत था, और एक रोज रात को फेसबुक पर गलती से इन्हें वह सन्देश भेज दिया था, जिसे मैं अपनी एक महिला मित्र को भेजने जा रहा था, और जिसकी शिकायत इन्होने दिन निकलते ही संगठन के मुख्य प्रभारी से की थी!  शायद इन्हें हज़म नहीं हुआ होगा कि बाबाजी के संगठन का कोई व्यक्ति गर्लफ्रेंड कैसे रख सकता है, और वो भी शादीशुदा होते हुए! वो बात अलग है कि यह बात संगठन के दिल्ली मुख्यालय से लेकर हरिद्वार मुख्यालय तक सबको पहले से ही पता थी!
पता नहीं क्यों सब लोग शादीशुदा व्यक्ति से प्रेम करने का अधिकार छीनना चाहते हैं, अभी कल ही व्हाट्स अप पर एक और महिला मित्र कह रही थी, शादीशुदा होकर गर्लफ्रेंड रखते हो, मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी, अपनी बीवी का नम्बर दो, अभी उसे बोलती हूँ!
खैर नम्बर तो मैंने नहीं दिया, और देने का फायदा भी नहीं था, क्यूंकि ना तो वो अपने पति के सामने मुझसे बात करती है, और ना ही मैं अपनी पत्नी के सामने उससे!
 

सोमवार, 26 जनवरी 2015

भारत भाग्य विधाता!

लोकतंत्र की
सबसे बड़ी इकाई के
जन मानस के स्वाभिमान को
सत्ताधीशों ने,
अपने हित की खातिर  
दुनियाँ के तथाकथित
आका के,
चरणों में अर्पित कर डाला!
अपनी बदहाली पे
आँसू बहा रही है,
भारत माता!
कल तक
जिनको गरियाते-गरियाते
पेट नहीं भरता था
आज
उन्हीं के आगे
नतमस्तक हैं,
भारत भाग्य विधाता!

शनिवार, 24 जनवरी 2015

बसंत

कितना मनभावन
और पावन है,
यह बसंत!
यौवन की पगडण्डी पर
पहला पग धरने वाले
प्रेमी युगलों से पूँछो!
कितना निष्ठुर,
कितना निर्मम है,
यह बसंत!
यह जाकर पूछो!
उदारक्षुधा से व्याकुल होकर,
प्राण त्यागते
भूमिपुत्र से!

गुरुवार, 22 जनवरी 2015

मेरा हाथ थामकर मुझ संग,
चार कदम तक चलकर देख!
इतना भी मैं जटिल नहीं,
तू, थोड़ा मुझे समझकर देख!
बहुत सहज हूँ, बहुत सरल हूँ,
मेरी आँखें पढ़कर देख!
आ जाऊँगा समझ तुझे,
तू थोड़ी कोशिश करके देख!!
अगर
जीवन में,
कभी समर्थ हुआ तो,
खोलूँगा
अपनी खुद की
एक छोटी सी दुकान!
बिखरी होगी खामोशी
जहाँ चारो ओर,
हर किसी को मिलेंगी जहाँ
जहान भर खुशियाँ
और
आसमान भर सपने !
वो भी एक दम मुफ्त...
क्योंकि,
तब तो मैं समर्थ होऊँगा ना!
क्षणिकायें
{१} 
ऐ सुनो!
थामकर फिर से कूची
तुम अपने हाथों में
होकर के तल्लीन
पुनः अपने ही जज्बातों में
कुछ अनदेखे सपनों को
साकार बनाओ ना!
ऐ सुनो!
आज तुम फिर से कोई
चित्र बनाओ ना!
{२}
कितने सपने चूर हो गये,
कितने अपने दूर हो गये!
हम कितने मजबूर हो गये!
पगडंडी से राजमार्ग तक आते-आते!
अबकी बार मिलोगे तो,
बतला देंगे!
  {3}
सुन साथी!
एक वक़्त
जीवन में, ऐसा भी आएगा!
जहाँ,
असुंदर और सुन्दर का
कुछ,
महत्त्व ना रह जायेगा...
सुन साथी!
क्या तुम्हें पता है,
जीवन में उस वक़्त..
काम क्या आएगा....
नहीं पता ना...
सुन साथी!
प्रेम और विश्वास
सार है जीवन का....
बिना प्रेम
अस्तित्व नहीं कुछ जीवन का..
गर,
तुम और मैं
मिलकर हम बन जायेंगे...
निश्चित,
सारी दुनिया पर छा जायेंगे..!!
{४}
तुझको,
जो बनना है
बन जा.
मुझको देशी रहने दे...
मैं पंछी,
उनमुक्त गगन का
मुझको
मुक्त ही रहने दे ...
साजिश
रचना छोड़
सनम
तू,
मेरे पंख कतरने की..
बार-बार,
हर बात पे
साथी !
मुझे परखना रहने दे...!!
{५}
बहुत दिनों के बाद
आज
फिर मन है
कुछ लिखने का..
अब ये उलझन है
क्या लिक्खूँ ..?
कविता,
गीत,
ग़ज़ल
लिक्खूँ
या
सिर्फ
तुम्हारा नाम!
{६}

तुम बिन जीवन
कैसा जीवन ..,
ना ही मुमकिन
ना नामुमकिन!
{७}
"परछाइयां,
जो चूमती थीं पैर हमारे..,
ढल गया सूरज,
 तो अब ये,
सर पे चढ़के नाचती है!
(८) 
आपा धापी में,
हम सब ये भूल गये,
चमक-दमक की
नकली दुनियाँ के पीछे,
कुदरत निर्मित
एक असली दुनियाँ भी है!
{९}
चंदा भी क्या चीज़ अज़ब है!
आशिक़ को बिंदिया सा लगता,
भूखे को लगता रोटी सा
बच्चों को लगे खिलौना सा
माँ को परदेश में बेटी सा!
चंदा भी क्या चीज़ गज़ब है!
{१०}
प्यार,
अकेला भी जी लेता है!
दुनियाँ में लेकिन,
बिछड़ जायें गर दोस्त,
तो दोनों
सिसक-सिसककर
मर जाते हैं! 





 

मंगलवार, 20 जनवरी 2015



वक्त ने वक्त वो दिखाया है,
रहनुमा तक ना साथ आया है!  
 एक अदद नौकरी की चाहत ने,
दर बदर पर उसे घुमाया है!
काम हासिल नहीं हुआ शायद,
आज वो फिर उदास आया है!
आज फिर बहन ने तसल्ली दी,
पिता ने हौसला बढ़ाया है!
आज फिर माँ ने जेब देखी है,
कहीँ सलफास तो ना लाया है!

जब दरपन में खुद से आँख मिलाता हूँ,
सच कहता हूँ जीते जी मर जाता हूँ!
घर से बेघर, दर दर भटक रहा हूँ मैं,
सबको लगता है मैं अच्छा खासा हूँ!
वो जो एक खता की थी, बरसों पहले,
सज़ा उसी की हर लमहे में पाता हूँ!
 मैं बेशक़ एक दिवस जीवन जीऊँ दिन भर,
पर रोज़ रात को एक सदी मर जाता हूँ!
जिसको मैंने अपना सब कुछ माना है,
उसको भी तो कहाँ आज कल भाता हूँ!

शनिवार, 17 जनवरी 2015

यूँ तो वो लापता नहीं लगता,
फिर भी उसका पता नहीं लगता!!
रोज मीलों का सफ़र करता हूँ,
फिर भी एक हमसफ़र नहीं मिलता!!
उससे बेहतर तो खूब मिलते हैं,
उसके जैसा मगर नहीं मिलता!!
सारी दुनियाँ की खबर है उसको,
सिर्फ मेरी खबर नहीं रखता!!
मेरी कश्ती है हवाले जिसके,
वो मुझे नाखुदा नहीं लगता!!

शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

गाँव से दूर गर नहीं आता,
दौर गर्दिश का भी नहीं आता!!
पहले हर पल जो साथ रहता था,
ख्व़ाब में भी नज़र नहीं आता!!
वक़्त ने वक़्त वो दिखाया है,
साथ साया तलक नहीं आता!!
आप दुनियाँ की बात करते हो,
आईने तक को मैं नहीं भाता!
दौर ग़र्दिश का जब से आया है, 
चाँद भी छत तलक नहीं आता!!