बुधवार, 31 दिसंबर 2014

"एक तुम हो जो गुलामी में जी रही हो अभी,
और एक वो है जो हर रोज़ कुचलता है तुम्हें!!"

रविवार, 21 दिसंबर 2014

"रहा खुद क़ैद में तब मैंने जाना,
कितना आसान था, उस शख्स को बंदिश में रखना!!

यूँ ही!!



“बेशक ये तमाम दुनियाँ गमों से भरी पड़ी है लेकिन, हँसी भी आपके चारो तरफ़ बिखरी हुई पड़ी है! बशर्ते कि आपमें उसे देख पाने कि काबिलियत हो!”
आज सुबह ‘जिम’ में एक बेहद ही हास्यात्मक प्रसंग उत्पन्न हो गया!
‘जिम’ दुनियाँ का वह स्थान है, जहाँ अधिकांश लोग अनावश्यक गंभीरता का लबादा ओढ़कर अपने ‘वर्कआउट’ में इतने मशगूल रहते हैं कि, उन्हें एक दूसरे से बात करने कि तो दूर एक दूसरे कि तरफ़ नजर उठाकर देखने तक कि फुरसत नहीं होती!
आज जैसे ही उन दोनों नवयुवकों, आयु यही कोई लगभग 17-18 साल, शारीरिक स्थिति ऐसी कि फ़ोटो कराओ तो एक्सरे ही आये (मेरा कम से कम पेट तो आता है),दोनों होठों की कोरों से बाहर आने को संघर्षरत गुटखे की पीक, ने भी जिम में प्रवेश किया सबकी नज़र पलभर के लिए ही सही लेकिन उनकी ओर जरूर उठी! हर कोई उन्हीं को देख रहा था, लेकिन उसी गंभीर मुद्रा में!
अचानक मेरे मुहँ से निकला “अबे! इन्हें यहाँ क्यों लाये हो, इन्हें तो डॉक्टर के पास लेके जाना था, !”
बस फिर क्या था इतना सुनते ही, चारो तरफ़ जो हँसी का ज़ोरदार फब्बारा छूटा, अगले तीन से चार मिनट तक रुका ही नहीं, और इस तरह सिर्फ मेरे एक छोटे से प्रयास से गंभीरता से भरे उस माहौल में कुछ देर के लिये ही सही, लेकिन हास्य कि लहर तो उठी!
बेशक उस वक़्त उन युवकों कि शारीरिक स्थिति पर ‘कमेन्ट’ करने से मेरा आशय उन पर व्यंग कसना नहीं, सिर्फ़ उस माहौल में हास्य उत्पन्न करना था! लेकिन फिर भी जरा सोचिये ये युवा पीढ़ी जो सोलह-सत्रह साल में ही गुटखे और तम्बाकू जैसे व्यसनों को सेवन कर करके अपनी सेहत से खिलवाड़ कर रही है, उसे ये सब करने के लिये प्रेरित करने वाले कौन लोग हैं, और उसे यह सब करने से रोकने की ज़िम्मेदार किन लोगों की है!!                  
                    

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

बंदिश

"ख़ुद बंदिशों में रहना उतना ही ज्यादा कठिन है, जितना आसान दूसरों पर अपनी बनाई हुई बंदिशें और कायदे कानून  थोपना!"

गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

ज़ज्बात

 "हम दोनों के इस रिश्ते में गर कोई ज़ज्बात नहीं,
चलने दो जब तक चलता है, डरने की कोई बात नहीं!"

कुछ अपनी और कुछ कुछ अपनों की

समंदर में बहुत पानी है लेकिन,
हमारी आँख से थोड़ा सा कम है!!

मैं गाँव लौट कर जाउँ भी तो जाउँ कैसे,
अना तो पहले ही मैं ख़ाक में मिला आया!!

कतरे-कतरे में हैं दरिया, हर ज़र्रे में रेगिस्तान!
जो महसूस कर सके इनको, है वो ही सच्चा इंसान!!

ये तेरा ज़िस्म है या रेत  है समंदर की,
मैं मुट्ठी बंद करूँ हूँ ये फ़िसल जाता है!!
तू मेरी है ये हर इक शख्स जानता है यहाँ,
फिर भी देखे है तुझे जो, वो  मचल जाता है!!
मेरा नसीब है कि तू मेरे नसीब में हैं,
मेरे नसीब से हर शख्स जला जाता है!!

वो तो खुद में ही एक ग़ज़ल है जी,
उस पे कैसे ग़ज़ललिखे कोई!!

बहुत कुछ है जो कहना चाहता हूँ,
कोई सुनने को राजी हो तो पहले!!

क़फ़स मुक्त होकर, खुला आकाश पाकर ,
परिंदा खूब रोया, परों में मुँह छिपाकर!!   
 बहुत कुछ था जो कह सकता था लेकिन,
बहुत ख़ामोश था वो मेरे पहलू में आकर!!

 

बुधवार, 5 नवंबर 2014

समाधान की खोज







नशा एक सामाजिक समस्या है!
एक ऐसी समस्या, समाज का कोई भी तबका जिससे अछूता नहीं रह गया है! हर वर्ग- हर धर्म का प्रथम से लेकर अंतिम तक हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी नशे की चपेट में है! और सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है कि नशा करने वालों में सबसे बड़ी तादाद उन लोगों की है, जो इसके दुष्प्रभावों से भलीभांति परिचित हैं!
सरकारों द्वारा समय-समय पर लोगों को नशाखोरी से दूर रखने और उन्हें जागरूक करने के लिए अभियान भी चलाये जाते हैं! और तो और सरकार का एक विभाग भी है, जो इसी क्षेत्र में कार्य करता है, लेकिन यह भी जग जाहिर है कि, उस विभाग की हालत परसाईजी की चूहेदानीसे अधिक कुछ नहीं है!
नशे को जन-जन तक पहुँचाने वाले माफिया की पकड़ और इच्छा शक्ति इतनी मजबूत है, कि अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के सामान लेने तो भी आपको शायद दस कदम चलकर जाना पड़े, लेकिन यकीन मानिये इन नशीले और मादक पदार्थों की जितनी चाहो उतनी मात्रा आपको अपनी गली के नुक्कड़ वाली दुकान पर ही आसानी से उपलब्ध हो जाएगी!
सिर्फ शराब ही नहीं, उसके अलावा नशे के अन्य विकल्प, जैसे गांजा, भांग, चरस, हीरोइन, स्मैक और भी अनेक पदार्थ हैं, जो आजकल सर्व सुलभ हैं! नशे की लत और ड्रग्स माफियाओं के दिन-ब-दिन फैलते हुए इस मकडजाल का सबसे सॉफ्ट टारगेट होते हैं, स्कूलों में अध्यनरत किशोर और किशोरियां! और इसलिए इन माफियाओं की कोशिश रहती है कि हर स्कूल-कॉलेज के बाहर स्थित छोटी से छोटी दुकानों पर इनको उपलब्ध कराया जाय, और पुलिस प्रशासन की छत्र-छाया में वह अपने मंसूबों को अमली जामा पहनने में कामयाब भी हो रहे हैं!
किशोरों में पनपती इस नशे की लत के पीछे कहीं न कहीं उनके परिजन भी जिम्मेदार है! क्यूंकि जिनके बच्चों को ये लत लग चुकी होती है, वो तो अपने बच्चों के साथ किसी अपराधी के जैसा बर्ताव करके उन्हें अपराधबोध से ग्रसित कर देते हैं! परिणामस्वरूप बच्चा अपने माता-पिता से दूर और नशे के और करीब आता जाता है! और जिनके बच्चे इससे अछूते हैं, वो सोचते हैं कि पडोसी के बच्चे कर रहे हैं, तो करने दो मेरे तो दूध के धुले हैं, और फिर अगर कभी करने भी लगे तो तब का तब देखा जायेगा! और उनकी यही अनदेखी उनके बच्चों को भी देर-सबेर नशे की राह की तरफ धकेल देती है!
यह तो रही दूसरी बात, लेकिन क्या कारण है कि इतना सब कुछ होने जानने के बावजूद भी समाज कोई बड़ा तबका इस बुराई के खिलाफ़ एकजुट होकर आवाज नहीं उठाता?
क्यूँ कभी सर्व समाज के लोगों के मन में यह विचार नहीं आता कि चलो सब लोग मिलकर इस बुराई के उन्मूलन के लिए कोई कदम उठायें ?
ठीक है मान लिया कि देश और समाज को समस्त समस्याओं से उबारने का ठेका सिर्फ औ सिर्फ बुद्धिजीवी वर्ग के पास है! लेकिन, सोचिये जो वर्ग बुद्धिजीवी ही इसी नशे की बदौलत बना है, वह कभी इस समस्या को लेकर क्यूँ गंभीर होगा!

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

मेरा कसूर !

बधाई हो, लड़की हुई है!
जैसे ही नर्स ने कहा, बीवी और उसके भाई की आँखों से झरझर आँसू टपकने स्टार्ट हो गये!
पिछले दो दिन कुछ ज्यादा ही भागदौड़ भरे हुए रहे !बीवी के भाई की पत्नी अर्थात मेरी सलहज अस्पताल में भर्ती थी!
प्रजनन काल का समय बीत जाने के बाद भी जब बच्चा प्राकृतिक रूप से नही हो पाया! तो फिर डाक्टर को सिजेरियन पद्धति से बच्चा पैदा करने का निर्णय लेना पड़ा! होने वाले बच्चे के पिता की गैर हाजिरी में कागजी कार्यवाही की खानापूर्ति भी मुझे ही करनी पड़ी!
यह दूसरा बच्चा है! पहली बेटी है, और ये भी बेटी ही है!
जान पहचान वालों की आवाजाही लगी हुई है! जब बच्ची बड़ी होगी तो इसे इस अस्पताल के मुख्य भवन में लगे CCTV कैमरे की फुटेज निकलवा कर जरूर दिखाना चाहुँगा, ताकि ये भी जान पाये कि यहाँ मेरे अलावा शायद ही किसी और के चेहरे पर रौनक दिखाई दे रही हो!
दुःख है तो सिर्फ इस बात का कि यहाँ उपस्थित जनसमूह में पुरुषों से ज्यादा नकारात्मक बातें महिलायें कर रही है!
वो तो शुक्र है, प्रकृति ने संतानें पैदा करने का कार्य पुरुषों को नहीं सौंपा, अन्यथा फिर तो इन महिलाओं का अपनी ही प्रजाति के प्रति द्वेष देखने लायक होता!
मन तो आज बहुत कुछ लिखने का है लेकिन अभी बच्ची जो मेरी ही गोद में है, उसे संभालना यहाँ लिखने से कहीं ज्यादा जरूरी है!
इसलिए बाकि बातें फिर कभी...
एक और मजेदार बात ये भी है कि यह मेरे द्वारा गोद में आने वाला अब तक का सबसे नवजात शिशु है!

(अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद!) 



शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

मैं समय हूँ!

क्यों तुम्हारा तो एक सगा भाई भी था ना?
जैसे ही दूर के रिश्ते की ननद ने अचानक पूँछा, वातावरण के साथ-साथ उनके होठों पर भी एक अज़ीब सी खामोशी छा गई!
पलक झपकते ही सारा घटनाक्रम आँखों के आगे से किसी चलचित्र की तरह गुजर गया!
कुछ जबाव ही नहीं सूझ रहा था, चेहरे को एकटक घूरती ननद की आँखें, उनकी बेचैनी को और बढ़ा रही थीं!
इससे पहले सामने से अगला सवाल दागा जाता, नजरें झुकाकर कुछ ज्यादा ही दबी सी जुबान में उत्तर दिया- हाँ, था तो सही लेकिन पिछले पाँच सालों से उसका कोई अता-पता ही नहीं है !
ओह! यह तो बहुत बुरा हुआ!
फिर भी आपने कभी उसे खोजने की कोशिश तो की ही होगी, कभी जिज्ञासा नहीं होती यह जानने की, वह कहाँ और किस हाल में है! ननद ने हाथ थामकर, सांत्वना देने का असफल सा प्रयास करते हुए, अगला सवाल दागा!
इस बार शायद उनके पास कोई उत्तर नहीं था, इसलिए बातचीत का रुख मोड़ना ही बेहतर समझा! खाना खाया आपने!
क्या वक्त के आगे वाकई सब कुछ धूमिल पड़ जाता है!
(
बड़ी बहन )