मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

‘मिड डे’ मील!


‘मिड डे’ मील की बदौलत 

पाकशालाओं में तब्दील होती
सरकारी पाठशालायें!
‘कन्फ्यूजन’ में फसे मास्साब!
खाना पकायें, खायें या फिर पढ़ायें,
गिनती के बच्चे,
प्रार्थना ख़त्म होते ही,
बरतन माँजने, में लग जायें! 
और मास्साब मंत्रणा में कि
आज दलिया, खीर, हलवा खिचड़ी
या फिर क्या कुछ और पकायें!
कौन सी जुगत से
टिफ़िन में भर कर 
घर को ले जायें
रोज नई-नई ‘डिश’ बनाते-बनाते
पाककला में प्रवीण हो चुके
कई मास्साबों की तो लालसा है,
अब उन्हें मास्साब नहीं,
हलवाई ही बुलाया जाये!
ताकि जब भी कोई गाँव में मरे,
तो दावत में ‘मालपुए’ बनाने का ठेका
उन्ही को मिल जाये!

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